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ति॒स्रो दे॒वीर्ह॒विषा॒ वर्द्ध॑माना॒ऽइन्द्रं॑ जुषा॒णा जन॑यो॒ न पत्नीः॑। अ॑च्छिन्नं॒ तन्तुं॒ पय॑सा॒ सर॑स्व॒तीडा॑ दे॒वी भार॑ती वि॒श्वतू॑र्त्तिः ॥४३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ति॒स्रः। दे॒वीः। ह॒विषा॑। वर्द्ध॑मानाः। इन्द्र॑म्। जु॒षा॒णाः। जन॑यः। न। पत्नीः॑। अच्छि॑न्नम्। तन्तु॑म्। पय॑सा। सर॑स्वती। इडा॑। दे॒वी। भार॑ती। वि॒श्वतू॑र्त्ति॒रिति॑ वि॒श्वऽतू॑र्त्तिः ॥४३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (विश्वतूर्त्तिः) जगत् में शीघ्रता करनेहारी (देवी) प्रकाशमान (सरस्वती) उत्तम विज्ञानयुक्त वा (इडा) शुभगुणों से स्तुति करने योग्य तथा (भारती) धारण और पोषण करनेहारी ये (तिस्रः) तीन (देवीः) प्रकाशमान शक्तियाँ (पयसा) शब्द, अर्थ और सम्बन्ध रूप रस से (हविषा) देने-लेने के व्यवहार और प्राण से (वर्द्धमानाः) बढ़ती हुई (जनयः) सन्तानोत्पत्ति करनेहारी (पत्नीः) स्त्रियों के (न) समान (अच्छिन्नम्) छेद-भेदरहित (तन्तुम्) विस्तारयुक्त (इन्द्रम्) बिजुली का (जुषाणाः) सेवन करनेहारे हैं, उनका सेवन तुम लोग किया करो ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो विद्वान् से युक्त वाणी, नाड़ी और धारण करनेवाली शक्ति ये तीन प्रकार की शक्तियाँ सर्वत्र व्याप्त, सर्वदा उत्पन्न हुई व्यवहार के हेतु हैं, उनको मनुष्य लोग व्यवहारों में यथावत् प्रयुक्त करें ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (देवीः) देदीप्यमानाः (हविषा) दानाऽदानेन प्राणेन वा (वर्द्धमानाः) (इन्द्रम्) विद्युतम् (जुषाणाः) सेवमानाः (जनयः) जनित्र्यः (न) इव (पत्नीः) स्त्रियः (अच्छिन्नम्) छेदभेदरहितम् (तन्तुम्) विस्तीर्णम् (पयसा) शब्दार्थसबन्धरसेन (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानवती (इडा) शुभैर्गुणैः स्तोतुं योग्या (देवी) देदीप्यमाना (भारती) धारणपोषणकर्त्री (विश्वतूर्त्तिः) विश्वस्मिँस्त्वरमाणा ॥४३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या विश्वतूर्त्तिर्देवी सरस्वतीडा भारती च तिस्रो देवीर्देव्यः पयसा हविषा वर्द्धमाना जनयः पत्नीर्नेवाऽच्छिन्नं तन्तुमिन्द्रं जुषाणाः सन्ति, ता यूयं सेवध्वम् ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। या विद्वत्संयुक्ता वाङ्नाडीधारणशक्तयस्त्रिविधाः सर्वाभिव्याप्ताः सर्वदा प्रसूता व्यवहारहेतवः सन्ति, ता मनुष्यैर्व्यवहारेषु यथावत्संयोक्तव्याः ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. विद्वानांकडून युक्त असलेली वाणी, नाडी व धारण करणारी शक्ती अशा तीन प्रकारच्या शक्ती सर्वत्र व्याप्त असतात. त्या शक्ती सर्व व्यवहाराचे कारण असतात. त्यांचा माणसांनी व्यवहारात यथायोग्य उपयोग करून घ्यावा.